आजादी के दौर में जिस तरह प्रतिबद्ध पत्रकारिता हुई। उसने देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने में...
आजादी के दौर में जिस तरह प्रतिबद्ध पत्रकारिता हुई। उसने देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने में अपनी अहम भूमिका निभाई। पत्रकारिता का वह दौर आजादी के 7 दशकों बाद भी नही भूला जाता है। आजादी के बाद इसी प्रतिबद्धता के कारण पत्रकारिता लोकतंत्र के चुतर्थ स्तम्भ के रूप में स्थापित हुई।गुलामी से मुक्ति के बाद देश के नवनिर्माण में पत्रकारिता ने अपने आजादी के दौर के मूल्य जिंदा रखे। कई पत्रकारों ने अपने लेखन से देश को नई दिशा दी। जिससे देश लगातार प्रगति करता रहा। कई नए आयाम स्थापित हुए। उदारीकरण का दौर आते-आते जहां देश विकास की गति आगे बढ़ रहा था वहीं पत्रकारिता के मूल्य व प्रतिबद्धता कहीं हाशिए में जा रही थी। पत्रकारिता में बाजारवाद हावी होने लगा था। हाल यह है कि आज पत्रकारिकता वस्तु और पत्रकार उत्पाद बेचने वाला बन गया है। हर चीज पूंजी ही निर्धारित कर रही है। इस पूंजीवादी व्यवस्था में जनता की आवाज कहीं खो सी गयी है। जनसरोकार अब पत्रकारिता में कम ही दिखायी देते है। मुख्यधारा के अखबार, मीडिया सत्ता प्रतिष्ठानों के हितों की ही चिंता करते हुए दिखायी देते है। जिससे संचार क्रांति के दौर में भी लोग रोटी, कपड़ा, मकान के लिए संघर्ष करने को मजबूर है। वह विकास की मुख्यधारा से कटते जा रहे है।अब डिजिटल दौर शुरू हो गया है। भारत में सबसे अधिक युवा है जो वेब मीडिया के जरिए देश दुनिया तक आसानी से पहुंच रहे है। द एको ने भी डिजिटल दुनिया में प्रतिबद्धता के साथ एक कदम बढ़ाया है। प्रतिबद्ध पत्रकारिता और आजादी के दौर के उस जज्बे को जिंदा रखने के लिए वेब मीडिया के जरिए एक नयी शुरूआत की है। द एको का मकसद केवल खबरों के जरिए सनसनी फैलाना नहीं है। न की किसी खबर को उत्पाद की तरह बेचना है। इसका मकसद लोगों को जगाना है। यह एक गूंज है। दबे, कुचले गरीब, बेबस व गांव के अंतिम छोर में बैठे व्यक्ति को मुख्यधारा से जोड़ना है। ताकि हर कोई इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपने अधिकारों को समझेे और संघर्ष के लिए आगे आ सके। इसी प्रतिबद्धता के साथ द एको ने एक मुहिम छेड़ी है जिसे आप सब के सहयोग से आगे बढ़ाना है।